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श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए 16 दिन तक हर घर में तर्पण, धूप-ध्यान आदि किए जा रहे हैं। कई लोगों को अपने से बिछुड़े की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं रहती, उनके लिए भी पितृ पक्ष में कुछ तिथियों का निर्धारण किया गया है। इन तिथियों पर व्यक्ति अपने परिजन के लिए श्राद्ध या पिंडदान, तर्पण आदि कर सकता है। ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया, जिन्हें अपने पूर्वजों की तिथि ध्यान नहीं हो, उनके लिए भी सोलह श्राद्ध में दिन निश्चित किए गए हैं।
तर्पण, पिंडदान और ब्रह्मभोज से होता समाधान
श्राद्ध पक्ष में पहले गाय, कौए और श्वान के लिए ग्रास निकालें, देव ऋण, ऋण, पितृ ऋण का शास्त्रों में विशेष उल्लेख मिलता है।
पितृ पक्ष में अपने-अपने पूर्वजों का स्मरण कर तर्पण, पिंडदान और ब्रह्म भोज के द्वारा पितरों के ऋण का समाधान होता है।
ये दिन निश्चित हैं…
●कुंवारों के लिए कुमार पंचमी, जो कि 15 सितंबर को है।
●मध्यम आयु वालों के लिए अष्टमी, जो 18 सितंबर को रहेगी।
●सुहागिनों के लिए नवमी, जो कि 19 सितंबर को आएगी।
●संन्यासियों के लिए एकादशी, जो कि 21 सितंबर को आ रही है।
●शस्त्र से मारे गए लोगों के लिए शहीद दिवस के रूप में चतुर्दशी तिथि 24 सितंबर को आ रही है।
●समस्त पूर्वजों के लिए सर्वपितृ अमावस्या दी है, जो 25 को होगी।
●मातामह का श्राद्ध 26 को होगा।
‘पूर्णिमा’ का श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए
पूर्णिमा तिथि पर जिनकी मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध पूर्णिमा को नहीं, अमावस्या को करना चाहिए। द्वितीया व तृतीया का श्राद्ध 12 सितंबर को होगा। 13 सितंबर को चतुर्थी का श्राद्ध होगा षष्ठी का श्राद्ध 16 को, सप्तमी का श्राद्ध 17 को, दशमी का 20 को, द्वादशी का 22 और त्रयोदशी का 23 सितंबर को रहेगा।