“सिर्फ दलील नहीं, आंकड़े भी देने होंगे”: धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए समान कानून की मांग वाली याचिका पर SC की दो टूक
सरकारी नियंत्रण में मंदिरों का हाल…बदहाल!
नई दिल्ली :
देश के सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए एक समान कानून बनाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि सिर्फ दलीलें नहीं बल्कि सामग्री भी देनी होगी। SC ने याचिकाकर्ता को दो हफ्ते का समय दिया. मामले में 19 सितंबर को अगली सुनवाई होगी. सुनवाई के दौरान बताया गया कि देशभर में नौ लाख मंदिरों में से लगभग चार लाख मंदिर हैं जो सरकारी नियंत्रण में हैं. हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों को मुसलमानों, पारसियों और ईसाइयों जैसे अपने धार्मिक स्थलों की स्थापना, प्रबंधन और रखरखाव के समान अधिकार होने चाहिए और राज्य इस अधिकार को कम नहीं कर सकता।
सीजेआई यू यू ललित ने कहा कि इसे बदलने की क्या जरूरत है, यह कुछ समय से चल रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि खराब प्रबंधन के कारण कर्नाटक में 15 हजार मंदिर बंद हो चुके हैं. इस पर CJI ललित ने कहा, “आप कहते हैं कि कर्नाटक में 15,000 मंदिर बंद हैं। क्या यह एक सिर्फ बयान है या आपके दावे का समर्थन करने के लिए उनके कुछ आंकड़े हैं❓ आप यह भी कहते हैं कि देश भर में नौ लाख मंदिरों में से लगभग चार लाख मंदिर हैं जो सरकारी नियंत्रण में हैं❗ आपके पास इसकी पुष्टि के लिए कुछ ठोस प्रमाण है❓ सवाल ये है कि अगर इन बोर्ड को हटा दिया गया तो फिर इन धार्मिक स्थलों का प्रबंधन कौन करेगा❓”
जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा कि हमारा 150 साल पुराना इतिहास है और इन पूजा स्थलों ने समाज की बड़ी जरूरतों को पूरा किया है, न कि केवल अपने उद्देश्य को, कुछ मंदिरों ने तो जन हित में अपनी जमीन भी दे दी है❗ गौरतलब है कि भाजपा नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर देश के सभी धार्मिक स्थलों के प्रबंधन के लिए एक समान कानून बनाने की मांग की है।तमिलनाडु,आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और पुडुचेरी में सरकार द्वारा नियंत्रित बंदोबस्ती बोर्डों को चुनौती दी गई है। याचिका में मंदिरों के साथ भेदभाव की नीति बताया गया है क्योंकि इन बोर्डों के अंतर्गत कोई मस्जिद और चर्च नहीं हैं। याचिका में दलील दी गई है कि जब हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समुदाय को धार्मिक स्थलों के रखरखाव और प्रबंधन का वैसा ही हक मिलना चाहिए जैसा मुस्लिम, पारसी और इसाई को हासिल है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक संस्थानों और स्थलों के रखरखाव और प्रबंधन राज्य सरकारों के हाथों में है। इसके लिए जो कानून है, उसे रद्द किया जाए क्योंकि यह संविधान के प्रावधानों के विपरीत है। इसमें दलील दी गई है कि मौजूदा कानून में राज्य सरकारें हिंदुओं, सिख, बौद्ध और जैन के धार्मिक स्थलों को नियंत्रित करते है। अंग्रेजी हकूमत ने 1863 में कानून बनाकर हिदुओं के मंदिर, मठ, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक स्थलों के नियंत्रण को सरकार को सौंप दिया था। मौजूदा कानून में यह भी प्रावधान है कि राज्य सरकारें तमाम मंदिर, गुरुद्वारों का कंट्रोल करें, लेकिन मुस्लिम, पारसी और इसाई के धार्मिक स्थल का नियंत्रण सरकार के हाथ में नहीं है। याचिका में कहा गया है कि सरकारी कंट्रोल की वजह से मंदिर, गुरुद्वारों की हालत खराब हो रही है।