संवाद प्लस।
गायिका सुहाना सईद को भी भजन गायन को लेकर कई बार विरोध का सामना करना पड़ा है।
कर्नाटक। धर्म के नाम पर समाज में दरार डालने वालों के सामने जीती जागती मिसाल है कर्नाटक के उडुपी जिले के कौप में एक ऐसे शख्स की जो धर्म से तो जरूर मुसलमान हैं, लेकिन इनकी पीढ़ी दर पीढ़ी अपने संगीत के जरिए मंदिरों में ईश्वर की अराधना करती चली आ रही है।
भारत एक ऐसा देश है जहां सारे धर्म से जुड़े लोग बड़े ही प्रेम से साथ साथ रहते हैं। बहुरंगी संस्कृति और परंपराएं और गंगा जमुनी संस्कृति ही यहां की खूबसूरती है। भाई चारा, परस्पर प्रेम व्यवहार जहां सारे धर्मों से भी ऊपर है वो बात और है कि सत्ता लोलुपता और व्यक्तिगत स्वार्थ के चलते कुछ स्वार्थी तत्व कई बार धर्म और जाति के आधार पर दरार डालने की अनवरत कोशिश करते आए हैं। लेकिन अंत में उन्हें निराशा ही हाथ लगी। धर्म के नाम पर समाज में दरार डालने वालों के सामने जीती जागती मिसाल है कर्नाटक के उडुपी जिले के कौप में एक ऐसे शख्स की जो धर्म से तो जरूर मुसलमान हैं, लेकिन इनकी पीढ़ी दर पीढ़ी अपने संगीत के जरिए मंदिरों में ईश्वर की अराधना करती चली आ रही है। यह परिवार मंदिरों में नादस्वर बजाता हैं। उडुपी जिले के कौप में एक मूराने मारी गुड़ी (तीसरा मारी मंदिर) है, जहां पर पुजारी पूजा करते हैं, साथ ही वाद्य यंत्रों के साथ देवी का गीत गाया जाता है। देवी की आराधना के लिए कई तरह के वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल होता है। जहां नादस्वर बजाने वाले व्यक्ति का नाम शेख जलील साहेब है। ये अपने वाद्य से निकली सुमधुर धुन से देवी अराधना में प्राण फूंक देते हैं।
श्रद्धा से बजाते हैं संगीत
कौप जिला उस वक्त काफी चर्चा में आया था जब मुस्लिम स्ट्रीट वेंडरों को मंदिर मेलों के दौरान दुकानें लगाने पर प्रतिबंध लगाया गया था, क्योंकि उन्होंने हिजाब के फैसले के खिलाफ अपनी निजता के अधिकार के चलते अपनी आवाज बुलंद की थी । जलील और उनके छोटे भाई शेख अकबर साहब खुद को इन सारे जातिगत विवादों से दूर रख कर शहर के मंदिरों में नादस्वर बजाते रहे। उनका कहना है कि, “हम मंदिरों में संगीत बजाते हैं, मंदिरों में पूजा अराधना के वक्त जब भी वादकों की जरूरत पड़ती थी, हमें ही बुलाया जाता है। हम लोग वर्ष भर इन्हीं मंदिरों में संगीत की सेवा देकर अपना घर चलाते हैं। यहां तक कि रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखने के बावजूद हम लोग मंदिरों में जाना बंद नहीं करते। हम सब का मानना है कि रोजे में भी ऊपर वाला हमें नादस्वर बजाने की ताकत दे रहा है।”
लगातार पांच पीढ़ियों से कर रहे हैं संगीत वादन
शेख जलील अपने परदादा शेख मथा साहेब को याद करते हुए बताते हैं कि उनके दादा जो कि लक्ष्मी जनार्दन मंदिर में संगीत बजाते थे, उन्हें मंदिर की तरफ से एक एकड़ जमीन भेंट की गई थी। उन्होंने बताया कि उनके दादा को ये भेंट मंदिर में संगीत बजाने के लिए मिली थी। जलील ने ये भी बताया कि उनके पिता बबन साहब, दादा इमाम साहब और परदादा मुगदुम साहब ने विभिन्न मंदिरों में संगीत बजाया करते थे।
साल के 4 महीने बजाते हैं नादस्वर
वह लक्ष्मी जनार्दन मंदिर में त्योहारों के दौरान साल में लगभग चार महीने नादस्वर बजाते हैं। हर मंगलवार दोपहर को मूराने मारी गुड़ी (तीसरा मारी मंदिर) में देवी मारी के ‘दर्शन’ के दौरान उनकी उपस्थिति जरूरी होती है। दरअसल यह जनार्दन मंदिर के ट्रस्टियों द्वारा स्थापित एक प्रथा है। वहीं जलील के छोटे भाई अकबर मारी गुड़ी के नए मंदिर में नाद स्वर बजाते हैं। अकबर शहर के कई अन्य मंदिरों में भी सेवा प्रदान करते हैं, जिनमें वेंकटरमण, कोप्पलंगडी वासुदेव और आसपास के कई देवस्थान शामिल हैं।
परंपरा को कायम रखने के लिए अगली पीढ़ी है तैयार
जलील और अकबर संयुक्त परिवार में जिला कौप में समुद्र तट के पास पाडु में एक मामूली घर में रहते हैं, जो नागा बनास (सर्प देवता का निवास) और देवस्थानों से घिरा हुआ है। अब जलील को कोई बेटा नहीं है, इसलिए उन्हें चिंता है कि इस खानदानी परंपरा को कौन आगे बढ़ाएगा। हालांकि उनके छोटे भाई अकबर के बच्चे इस परंपरा को आगे बढ़ाने का काम जारी रखेंगे। बच्चे खानदानी परंपरा से जुड़े वाद्य नादेश्वर को बजाने की कला में निपुण होने का निरंतर अभ्यास कर रहें हैं। उनका मानना है की उनकी कला ही उनका ईश्वर और अल्लाह है, वो कभी निराश नहीं होने देता।