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ऐसी संध्या भजन नहीं मनोरंजन संध्या कही जानी चाहिए

फिल्मी धुनों पर भजन थोड़े ही समय लागत है अच्छे

संवाद प्लस।

जो भाव से भजन गाएगा वो श्रोताओं के हृदय तक पहुंच जाता है। यदि भजन को फिल्मी गानों की तर्ज पर प्रस्तुत किया जाएगा तो वह मात्र एक-दो बार लोगों को अच्छा लगेगा। फिर भूल जाएंगे। यह कहना है भजन सम्राट पद्मश्री अनूप जलोटा का। जलोटा गुरुवार को विद्याधर नगर विकास समिति की ओर से आयोजित दशहरा महोत्सव में प्रस्तुति देने जयपुर आए थे। पत्रकारों से बातचीत में जलोटा ने कहा कि उन्होंने जो भजन 45-50 साल पहले रिकॉर्ड किए थे, उन्हें लोग आज भी सुन रहे हैं। इसका कारण यह है कि वे भजन मन से गाए हैं तो लोगों के हृदय तक पहुंच गए। भजनों की आधुनिक परंपरा पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आजकल फिल्मी धुनों पर बहुत से गायक भजन गा रहे हैं जो ठीक नहीं है। हमेशा तुलसीदासजी, सूरदासजी मीरा बाई और कबीर दासजी जैसे महान संतों के लिखे शुद्ध भजन गाने चाहिए तथा उनकी शुद्धता बरकरार रखनी चाहिए।


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