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नागौर जिले में मेड़ता से लगभग 20-22 कि.मी. दक्षिण में स्थित भवाल एक प्राचीन गाँव है। यहाँ पर विक्रम संवत् की 12वीं शताब्दी के लगभग निर्मित महाकाली का एक प्राचीन मंदिर विद्यमान है। इस मन्दिर में उपलब्ध शिलालेख से पता चलता है कि विक्रम संवत् 1380 की माघ बदी एकादशी (24 दिसम्बर, 1323 ई.) को इस मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ था। मन्दिर में महाकाली और ब्रह्माणी की दो मूर्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं। इस देवी मन्दिर के प्राचीन स्तम्भों के आधार पर इसे सोलंकी (चालुक्य) शासकों द्वारा निर्मित होने का अनुमान किया जाता है। महाकाली भवालमाता के नाम पर ही इस कस्बे का नाम भवाल पड़ा।
राजस्थान का अनूठा चमत्कारिक मंदिर ‘जहां माता को लगता है ढाई प्याला शराब का भोग’
देवी के इस मशहूर मंदिर की विशेषता माता को भक्तोंं द्वारा शराब का भोग लगाया जाना है। माता को एक भक्त द्वारा ढाई प्याला शराब का भोग लगाया जाता है। श्रद्धालुओं में मान्यता है कि माता उसी भक्त की शराब का भोग स्वीकार करती है, जिसकी मनोकामना या मन्नत पूरी होनी होती है और वह सच्चे दिल से भोग लगाता है।
इस देवी को मदिरा चढ़ाये जाने की परम्परा है। लोकविश्वास है कि ये देवी जिस भक्त पर प्रसन्न होती है उसी का भोग ग्रहण करती है।
मंदिर से जुडी ये मान्यता भी है प्रसिद्ध
भंवाल माता मंदिर से जुडी एक कहानी भी काफी पुराने समय से बहुत प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि भंवाल मां प्राचीन समय में नागौर जिले के भंवालगढ़ गांव में एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे धरती से स्वयं प्रकट हुई थी। इस स्थान पर डाकुओं के एक दल को राजा की फौज ने घेर लिया था। मृत्यु को निकट देख उन्होंने मां को याद किया। मां ने अपने प्रताप से डाकुओं को भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया। इस प्रकार डाकुओं के प्राण बच गए। इस दौरान माता ने डाकुओं से मंदिर निर्माण की बात कही और डाकुओं ने मंदिर का निर्माण करवाया था।