संवाद प्लस।
बाड़मेर से लगभग 48 कि.मी. तथा चौहटन तहसील मुख्यालय से लगभग 10 कि.मी. दूर उत्तर में लाख एवं मुदगल के वृक्षों से आवृत्त सुरम्य और रमणीय पर्वतीय घाटी में वीरातरामाता का मंदिर है जो 400 वर्षों से भी अधिक पुराना है।
इस स्थान की यह विशेषता है कि यहाँ एक ओर बालू रेत का विशाल टीला है तो दूसरी ओर पर्वतीय चट्टाने हैं । प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण इस देवी मन्दिर के स्थान पर अन्य पूजनीय स्थान, कुण्ड और विश्रामगृह बने हैं।
इस मन्दिर में देवी की सुन्दर और सजीव प्रतिमा विराजमान है जो लोकमानस में वीरात्रा माता के नाम से प्रसिद्ध है। ये भोपों की कुलदेवी मानी जाती है।
वर्ष में लगते है तीन मेले
वीरात्रा माता के मन्दिर पर वर्ष में तीन बार अर्थात चैत्र, भादवा एवं माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को विशाल मेले लगते हैं जो तीन दिन तक चलते हैं। इस अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी के दर्शनार्थ यहां आते हैं। नगाड़ों की करतल ध्वनि तथा आरती की स्वर लहरियों से मन्दिर परिसर गूंज उठता है।