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तन्नौटमाता का प्रसिद्ध मन्दिर जैसलमेर जिले में प्राचीन और सीमावर्ती गाँव तन्नौट में स्थित है। तन्नौट रामगढ़ से आगे पाकिस्तान की सीमा से लगता हुआ सामरिक महत्त्व का एक प्राचीन गाँव है। एक जानकारी अनुसार तन्नौट यहाँ के भाटी राजवंश की प्रथम राजधानी थी। तन्नौट के बाद लोद्रवा तथा फिर 1155 ई. में राव जैसल द्वारा संस्थापित जैसलमेर इस राजवंश की राजधानी बने। शोधकर्ताओं द्वारा बताया जाता है कि भाटी राजा केहर (तन्नुराय के पिता) की झाली रानी को तणुरिया देवी ने स्वप्न में दर्शन दिये तथा आदेश दिया कि अपने पुत्र का नाम तणु रखना तथा मेरे नाम पर नगर बसाकर वहाँ मेरा मन्दिर बनवाना। इससे तुम्हारे यश और गौरव की वृद्धि होगी तथा राजलक्ष्मी स्थिर रहेगी। देवी का आदेश शिरोधार्य कर उसने तुन्नोट नगर बसाया ओर वहाँ देवी का मन्दिर बनाया। तन्नौटमाता का प्राचीन समय से ही बहुत माहात्म्य रहा है। भाटी राजा विजयराज प्रथम इस देवी का परम भक्त था। एक ऐतिहासिक प्रसंग है कि विजयराज के शासनकाल में सिन्ध की ओर से एक मुस्लिम आक्रान्ता अपनी विशाल सेना के साथ तन्नौट पर चढ़ आया । संकट की इस घड़ी में भाटी शासक विजयराज ने तन्नौट देवी के समक्ष प्रार्थना की। वे इस युद्ध में उसे विजय दिलवा दें तो वह देवी की कृपा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए अपना मस्तक देवी के चरणों में अर्पित कर देगा। देवी की अनुकम्पा से उसे विजयश्री मिली तथा तदनन्तर विजयराज देवी को दिये हुए अपने वचन को पूरा करने अपना शीश अर्पित करने (कमल पूजा) देवी के मन्दिर पहुँचा तो देवी ने स्वयं प्रकट होकर उसे दर्शन दिये तथा शीश चढ़ाने से रोक दिया। देवी ने विजयराज की आस्था और भक्ति से प्रसन्न होकर उसे एक चूड़ (चूड़ी) प्रदान की तथा सदैव विजयी होने का आशीर्वाद दिया।
लोक आस्था की देवी है माँ
राजपरिवार की आराध्या होने के अलावा तन्नौटमाता लोक आस्था की भी देवी है। जैसलमेर और सारे माड क्षेत्र में वे बहुत लोकप्रिय हैं। जनसामान्य के साथ ही सेना में भी उनके प्रति असीम आस्था और विश्वास है। पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय भारतीय सैनिक तन्नौटमाता के दर्शन कर उनकी अनुप्राणित हो शत्रु सेना पर टूट पड़ते थे।