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संवाद प्लस।

सालासर बालाजी धाम की स्थापना को लगभग 268 साल पूरे हो गए। श्रावण सुदी नवमी विक्रम सम्वत 1811 को संत मोहनदास ने सालासर में बालाजी के मंदिर की स्थापना की थी। सालासर धाम देश में एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां दाढ़ी मूंछ वाले हनुमानजी पूजे जाते हैं। राजस्थान के चूरू जिले में सीकर सीमा पर सालासर बालाजी का विशाल मंदिर स्थापित है।

सालासर बालाजी की स्थापना ऐसे हुई

सालासर बालजी की स्थापना का इतिहास नागौर जिले की लाडनूं तहसील के गांव आसोटा से जुड़ा है। किदवंती है कि आसोटा में एक किसान खेत जोत रहा था तभी उसके हल की नोक किसी कठोर चीज से टकराई। किसान ने उसे निकाल कर देखा। वो एक बालाजी की मूर्तिनुमा पत्थर था।फिर किसान ने वह मूर्ति आसोटा के ठाकुर को सौंप दी। उसी रात ठाकुर के सपने में बालाजी आए और कहां कि वे यहां के लिए नहीं बल्कि सालासर के लिए प्रकट हुए हैं। उन्हें सालासर पहुंचाया जाए। इस पर ठाकुर ने मूर्ति को बैलगाड़ी में रखकर अपने दरबार के लोगों को सालासर की ओर भेज दिया।

मोहनदास के धुणे के पास आकर रुकी बैलगाड़ी
मंदिर पुजारी अनुसार गांव में मोहनदास अपनी बहन के घर उनकी सेवा करने के लिए आए थे। वे सालासर में एक धुणे पर बैठकर राम भक्ति किया करते थे। बालाजी के भक्त थे। बालाजी ने उनको सपने में दर्शन देकर कहा कि वे सालासर आ रहे हैं तो उन्हें लाने के लिए सालासर की सीमा पर चले जाओ।इस पर भक्त मोहनदास सालासर के लोगों को साथ लेकर सीमा पर चले गए। वहां उन्हें ठाकुर के आदमी और एक मूर्ति को लेकर बैलगाड़ी आती दिखी। इस पर तय किया गया कि सालासर में जहां भी यह बैलगाड़ी रुकेगी। वहीं पर सालासर बालाजी की स्थापना की जाएगी। ​वह बैलगाड़ी मोहनदास के धुणे के पास आकर रुकी। वहीं पर मूर्ति स्थापित कर दी गई। यहीं स्थान वर्तमान में सालासर धाम के नाम से जाना जाता है।


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