एक नई पहल…
संवाद प्लस।
अब तक मंदिरों में भगवान की मूर्तियों पर चढ़ी मालाओं को यूं ही फेंक दिया जाता रहा है। इन मालाओं से जुड़ी भक्तों की आस्था को बनाए रखने के लिए अब एक नई सराहनीय पहल की जा रही है। अब भगवान को चढ़ाई गईं मालाएं फेंकने की बजाए उनसे कम्पोस्ट खाद बनेगी। एक बैठक में इसके लिए संत-महंतों द्वारा इस पर विचार किया गया। कई मंदिर प्रबंधनों ने इस सुझाव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। और कम्पोस्ट खाद बनाने की सहमति भी दे दी। साथ ही मंदिर की ओर से कंपोस्ट खाद बनाने की मशीन देने को भी स्वीकृति प्रदान कर दी।
वर्तमान स्थिति ये है
वैसे आजकल मालाओं का चलन सीमित हो गया है। भक्त आजकल एक फूल लेकर ही जाने लगे है या फिर प्रसाद या नकद जो दान पेटी में डाला जा सके। वैसे आजकल कई मंदिरों में क्यू आर कोड से भी दान का चलन बढ़ गया है।
30 ― 40 साल पहले ये थी परम्परा
वर्षो पहले मंदिर में दर्शनार्थियों द्वारा एक पूजा की थाली ली जाती थी जिसमें श्रीफल(नारियल) माला,प्रसाद,धूप बत्ती,वस्त्र(चुनरी) आदि होते थे। कई मंदिरों में आज भी ये प्रथा बनी हुई है।
समय ने बदला क्रम
पूजा थाली के बाद,माला व श्रीफल के साथ प्रसाद का क्रम चला,फिर क्रम बदला और नारियल हट गया और प्रसाद-माला रह गई। अब माला का भी क्रम कम हो गया ओर रह गया प्रसाद व नकद दान। देखने में आ रहा है अब दर्शनार्थी एक फूल व क्यूआर कोड के सहारे प्रभु को रिझा रहे है।
माला इसलिए नहीं चढ़ाते
महंगी होने की वजह से,मंदिर प्रबंधन द्वारा प्रभु को अर्पित नहीं किये जाने की वजह से। ये शिकायत भी रही है कि बाहर आकर वही मालाएं पुनः बिक्री के लिए आ जाती है। इन कारणों के चलते भक्तों का माला अर्पित क्रम से रुझान कम हो चला है।