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आषाढ़ की गुरु पूर्णिमा से शरद पूर्णिमा तक होती है पदयात्रायें

यहां चढ़ती है चांदी की आंखें, हाथ-पैर, मस्से और जीभ, क्योंकि कष्ट हरते हैं डिग्गी कल्याणजी, महीने में चढ़ जाते है हजारों अंग।


संवाद प्लस।

अमूमन मंदिरों में फूल प्रसाद, अगरबत्ती चढ़ाते तो आपने सुना होगा, लेकिन डिग्गी कल्याणजी को भक्त चांदी की आंखें, हाथ-पैर, मस्से और जीभ सहित कई मानव अंग चढ़ाते हैं। यह मान्यता कष्टों को हरने से जुड़ी हुई है। महीने भर में चांदी के ये हजारों अंग मंदिर में इकट्ठा हो जाते हैं। इस आस्था का सर्वाधिक जुड़ाव मध्यप्रदेश के श्योपुर और गुना जिलों से आने वाले श्रद्धालुओं में हैं। इन जिलों से रोजाना एक हजार से ज्यादा श्रद्धालु आ जाते हैं। राजस्थान के भी कई जिलों के लोगों की यहां आस्था जुड़ी है। आषाढ़ की गुरु पूर्णिमा से शुरू होने वाली पैदल यात्राएं शरद पूर्णिमा तक चलती है।

यहां बिकते है अंग!

डिग्गी में प्रसाद, पूजन सामग्री की सैकड़ों दुकानें हैं। जहां चांदी की आंखों की जोड़ी, हाथ, पैर, चांदी के चप्पल, हाथ में बांधने की बेड़ी, स्वास्तिक, चांदी के मस्से, सूरज, चांद, तारे, जीभ, पलंग सहित स्टील की थाली, कांसे पीतल की थाली मिल जाते हैं।
बताया जाता है कि रोजाना सैकड़ों की संख्या में चांदी के ये अंग बिकते हैं। मान्यता है भक्त मन्नत में ये अंग चढ़ाने का संकल्प लेते हैं। चप्पल, पलंग सहित अन्य वस्तुएं चढ़ाने के पीछे का कारण यह है कि श्रद्धालु मन्नत पूरी होने तक जिन चीजों का त्याग करता है, वह आकर चढ़ाता है। कल्याणजी को रोज चंदन, केसर का -लेप करवाया जाता है। स्नान से आने वाला जल गोमुख से गिरता है। इसे पीने और शरीर पर लगाने से चर्म रोग मिटने की भी मान्यता है। गीत भी है कि आन्ध्याने ने आंख्या दीजो, कोढ्या रो कलंक काट जो म्हारा डिग्गीपुरी रा राजा…!
यहां पुजारी अपरस में रहकर ठाकुरजी के लिए रोज रसोई बनाते हैं। भोग चूरमा, बाटी चढ़ती है। सेवा-पूजा का यह क्रम करीब 800 साल से चल रहा है।


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