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संवाद प्लस।
लोकेन्द्र शर्मा की कलम से
बाबा श्याम की छोटी भजन संध्या से लेकर वार्षिकोत्सव तक सभी जगह आजकल केमिकल इत्र की भारी बौछार देखी जा रही है।
इत्र को पानी व केमिकल में मिलाकर आजकल लोग भजनों में दमादम इत्र छिड़कते देखे जा रहे है।
एक समय में जो इत्र सिर्फ भगवान के ऊपर चढ़ाया जाता था….आजकल भजन संध्याओं में लोगो पर जबरन उड़ेला व फेंका जा रहा है।
अब लगने लगा है जैसे ये आजकल एक परंपरा सी बनती जा रही है!


ऐसे केमिकल इत्र से केवल कपड़े ही नहीं स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। इत्र फेकने के तरीके से किसी की आंख में तो किसी की स्किन पर बड़ा विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।

जबकि होना ये चाहिए
अच्छी क्वालिटी का शुद्ध इत्र लाकर उसे देवी देवताओं को समर्पित करते हुए प्रसाद के रूप में आये हुए भक्तों में रुई के फुहे के साथ वितरित किया जाना चाहिए या देवी देवता की प्रतिमा पर भाव से समर्पित किया जाना चाहिए।

भजन गायकों ने डाली गलत परम्परा!
इस क्रम में कुछ भजन गायकों ने इस गलत चलन में अहम भूमिका निभाई है। मंच से लोगों को आव्हान कर डाला,इतनी शीशियां खरीदें इस तरह यहां वहां चढ़ाएं आदि। अब इस अफवाह ने ऐसी जगह बना ली है कि भजन संध्याओं में अब इत्र की होली ही खेली जाने लगी है!
दमादम इत्र फेका जा रहा है,कुछ प्रेमीजन इस वजह से आजकल दरबार से दूर बैठने लगे है…अनुभव कहता है की भक्ति व प्रार्थना इस तरह किजाए कि लोग भगवान से जुड़े पास आएं,ना कि दूर जाएं।

इस लेख का उद्देश्य भजनों में गरिमा को बनाये रखना मात्र है…इत्र कैसा लिया जाए,कैसे अर्पित किया जाए,सही परम्परा के लिए क्या क्या उपाय किये जायें ये सभी के अपने अपने मत व अनुभव पर निर्भर करता है।आपकी आस्था से किसी प्रकार की आलोचना का हमारा कोई उद्देश्य नहीं है।


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